उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पहली बार मार्च माह में कड़ाके की सर्दी के बीच अधिकतर जल स्रोत, ताल और छोटे नालों का पानी जम गया है। जल स्रोतों का पानी जमने से माइग्रेशन गांवों के लोगों के साथ ही चीन सीमा की सुरक्षा में तैनात जवानों की भी मुश्किलें बढ़ गई हैं।
इस बार शीतकाल में हिमालयी क्षेत्रों में नहीं के बराबर बर्फबारी हुई है। अक्तूबर से जनवरी तक 2400 मीटर अधिक के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में केवल दो बार बर्फबारी हुई थी। फरवरी से अब तक इन क्षेत्रों में 6 बार बर्फबारी हो चुकी है।
फरवरी मार्च में ही अब तक 2 हजार मीटर तक के क्षेत्रों में भी तीन बार बर्फबारी हो चुकी है। इससे पूरे क्षेत्र में गुंजी से लेकर मिलम तक कड़ाके की ठंड पड़ रही है। रात के समय भी तापमान माइनस पांच डिग्री से भी कम पहुंच रहा है।
कड़ाके की ठंड के कारण यहां लोगों और जवानों को पीने के लिए तक पानी का प्रबंध करने को बर्फ गलानी पड़ रही है। मार्च माह में स्थानीय लोगों के अनुसार इस तरह के हालात पहले कभी नहीं हुए जब तालों तक का पानी जम गया।
उससे साफ है कि इसका असर माइग्रेशन काल पर पड़ेगा। आम तौर पर घाटी के गांवों के लोग ग्रीष्म कालीन माइग्रेशन के लिए 15 अप्रैल तक जाते हैं। अब ऐसे ही बर्फबारी होते रही तो माइग्रेशन का समय भी आगे खिसक सकता है।
इन प्रमुख स्थानों में जम गया है पानी
जल स्रोत ऊंचाई मीटर में
मुनस्यारी से लगी ताल 2300
थामरी कुंड 2600
नंदा कुंड 2900
सूरज कुंड 3500
मौसम पिछले कई सालों से लगातार बदलता जा रहा है। इससे यहां फसल चक्र भी प्रभावित हो रहा है। पर्यावरण संरक्षण के लिए गंभीरता की आवश्यकता है। इससे यहां आने वाले लोग भी प्रकृति का वैभव देख और आनंद प्राप्त कर सकें।
राजेन्द्र सिंह रावत, मुनस्यारी।
बृजेश सिंह धर्मशत्तू, अध्यक्ष ईको पार्क मुनस्यारी।
नलों में सप्लाई प्रभावित
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में नलों में पानी जमने के कारण मुनस्यारी और उसके आस पास के गांवों में भी पानी की सप्लाई प्रभावित हो रही है। कई बार नलों से पानी की आपूर्ति कम होने के कारण ग्रामीणों को मुश्किल हो रही है।